Jabalpur का वेटरनरी विश्वविद्यालय पहली बार करेगा शोध

जबलपुर। नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय के विज्ञानिक अभी तक गाय, बकरी और मुर्गी की नई प्रजातियां विकसित कर रहे हैं, लेकिन अब पहली बार वे सुअर की नई प्रजातियां तैयार करेंगे। प्रजातियां विकसित करने के साथ ही सुअर को होने वाली बीमारियां और उनका इलाज पर शोध करेंगे। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) ने पहली बार वेटरनरी विश्वविद्यालय जबलपुर को सुअर पर शोध करने का काम सौंपा है।

देश के कुछ ही वेटरनरी विश्वविद्यालयों ने काम किया है

अभी तक सुअर की प्रजातियां, बीमारी और इलाज पर देश के कुछ ही वेटरनरी विश्वविद्यालयों ने काम किया है, लेकिन इसके बेहतर परिणाम सामने नहीं आए। आइसीएआर ने अब मध्यप्रदेश के वेटरनरी विश्वविद्यालय जबलपुर को यह काम दिया है। आइसीएआर ने इस काम को करने विश्वविद्यालय को दो प्रोजेक्ट दिए हैं। इसमें पहला अाल इंडिया कोर्डिनेशन रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत सुअर की प्रजातियों को विकसित करना है और दूसरा नेशनल लाइव स्टाक मिशन के तहत नई प्रजातियों को ग्रामीण आंचल में रहने वालों को देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है।

सफेद सुअर की दो प्रजातियों पर काम

सफेद सुअर में मुख्य तौर पर दो प्रजातियां होती हैं। पहली छोटा सफेद सुअर, जिसकी ऊंचाई, मोटाई और उसमें मांस की क्षमता कम होती है। इनका वजन 10 से 20 किमी तक हो सकता है। वहीं दूसरा बड़ा सफेद सुअर, जिसमें ऊंचाई और मोटाइ अधिक होने की वजह से सबसे ज्यादा मांस होता है। मोटे तौर पर अभी इन दो प्रजातियों पर ही काम हुआ है, लेकिन वेटरनरी विश्वविद्यालय इन दोनों प्रजातियों से जुड़ी नई प्रजातियों को भ्रूण प्रत्यारोपण के जरिए विकसित करेगा। उनके इस काम में असोम और झारखंड के वेटरनरी विज्ञानिक मदद करेंगे।

समय और राशि पर्याप्त, परिणाम जल्द

आइसीएआर ने आल इंडिया कोर्डिनेशन रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत समय और बजट, दोनों की सीमा तय नहीं की है। जरूरत के मुताबिक, दोनों में इजाफा किया जाएगा। वहीं दूसरे प्रोजेक्ट नेशनल लाइव स्टाक मिशन में मुख्यतौर पर आदिवासी और आंचलित क्षेत्रों में रहने वाले पशुपालकों को चिंहित कर नई प्रजातियां दी जाएगी और उसमें होने वाले बदलाव के आधार पर शोध को आगे बढ़ाया जाएगा। मध्य प्रदेश में पहली बार सुअर की प्रजातियों को विकसित करने पर शोध होगा। इसके लिए वेटरनरी विवि के विज्ञानिक प्रदेश के मौसम, जलवायु और खानपान को ध्यान में रखकर अपने शोध को आगे बढ़ाएंगे।

इसलिए पड़ी शोध की जरूत

देश में नार्थ ईस्ट और दक्षिण भारत के अधिकांश ऐसे क्षेत्र हैं, जहां सुअर के मांस की अधिक मांग है, लेकिन इस पर विस्तार से शोध न होने के कारण यह मांग पूरी नहीं हो पाती। खासतौर पर नार्थ ईस्ट में यह सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। इस बात को ध्यान में रखकर सुअर की नई प्रजातियों ने सिर्फ विकसित किया जाएगा, बल्कि उन्हें बीमारी रहित बनाकर उसके पालन का क्षेत्र बढ़ाया जाएगा। इस काम के लिए वेटरनरी विवि के विज्ञानिक, नार्थ ईस्ट और दक्षिण भारत जाकर सर्वे भी करेंगे।

पहली बार मिली शोध की जिम्मेदारी

वेटरनरी विश्वविद्यालय को पहली बार सुअर की नई प्रजातियां विकसित करने, उनकी बीमारियों की पहचान करने, इलाज तलाशने का काम हमारी विज्ञानिकों को दिया गया है। आइसीएआर ने इसके तहत दो बड़े प्रोजेक्ट दिए हैं, जिसमें आल इंडिया कोर्डिनेशन रिसर्च प्रोजेक्ट और नेशनल लाइव स्टाक मिशन के तहत यह काम किया जाएगा। इसके लिए विवि में आधुनिक प्रयोगशाला बनेगी और वहीं हमने सुअर को रखने के लिए विशाल फार्म भी तैयार कर रहे हैं।

प्रो.एसपी तिवारी, कुलपति, वेटरनरी विश्वविद्यालय जबलपुर

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